आला हजरत जमात रज़ा -ए- मुस्तफ़ा की तहरीक, जिसने मुसलमानों को दी रहनुमाई
बरेली : यूपी के बरेली शरीफ़ में 107 वां उर्स-ए-रज़वी सोमवार (पीर) को परचम कुशाई के साथ शुरू हो जाएगा। इस तीन दिवसीय उर्स में मुल्क भर से मुफ्ती, उलमा, और जायरीन के साथ-साथ कई मुल्क़ों (देश) से मेहमान शरीक होंगे। दरगाह-ए-आला हज़रत, और ताजुश्शरिया दरगाह पर लाखों जायरीन दुआओं के लिए पहुँच रहे हैं।
आला हज़रत की इल्मी, और दीऩी सेवाएं
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फ़ाज़िल-ए-बरेलवी इमाम अहमद रज़ा खां रहमतुल्लाह अलैह का जन्म 14 जून, 1856 को हुआ था। उन्होंने अपने इल्मी सफ़र में 1100 से ज़्यादा किताबें तहरीर कीं। इसके साथ ही 7500 से ज़्यादा फतवे जारी किए थे। दीनी, और दुनियावी मसाइल पर कुरान और हदीस की रोशनी में हुक्म बयान किया। उनका विसाल (इंतकाल) 28 अक्टूबर, 1921 को हुआ, और इस्लामी हिजरी सालातीन के हिसाब से इस बार 107वां उर्स मनाया जा रहा है।
जमात-ए-रज़ा-ए-मुस्तफ़ा की तहरीक
1920 में आला हज़रत ने जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा की बुनियाद रखी। मक़सद था हिंदुस्तान के कोने-कोने से अहले सुन्नत उलमा को एक प्लेटफ़ॉर्म पर इकठ्ठा करना, ताकि मुसलमानों के दीनी,और सामाजिक मसाइल का हल निकाला जा सके। जमात के राष्ट्रीय महासचिव फरमान हसन खां “फरमान मियां” के मुताबिक “आला हज़रत ने उस दौर में तहरीक दी, जब मुल्क अंग्रेज़ी हुकूमत के साए में था। आज भी उनकी तालीमात दुनियाभर के मुसलमानों के लिए रहनुमा हैं।”
दुनिया भर में फतवों पर अमल
आला हज़रत की किताबें और फतवे सिर्फ़ हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की, ब्रिटेन और अफ्रीकी मुल्कों तक पढ़े जाते हैं। उनकी तहरीरात में इल्म, इंसानियत और मोहब्बत का साफ़ पैग़ाम मिलता है।
